Sunday 15 April 2012

देश मेरा सो रहा है

पीर हो गई पर्वत सी कब से,
आहवान वो करता है कब से.

व्याकुल पड़ी है देव भूमि,
शिव-धनुष टूटे हैं कितने,
मौन परशुराम हैं अब,
गांडीव अर्जुन मांगता है.
खीचने  को फिर से रेखा,
देश लक्ष्मण मांगता है.

चक्रव्हीयु हैं अनेकों,
गुम अभिमन्यु हो गया है.
मिल गया गोवर्धन परन्तु,
मेरा कान्हा खो गया है.

अग्निपथ की जो डगर थी,
कोई उस पर कब चला है.
सरफरोशी की तमन्ना,
घोटती खुद का गला है.

चाहिए एक और शेखर,
एक बिस्मिल, एक वल्लभ.
हुनकर एक चाहिए भगत की ,
आँखें खोले जो जगत की.

चाहिए एक और गीता,
भ्रमित अर्जुन हो रहा है.
हो गई है भोर किन्तु,
देश मेरा सो रहा है.    

-अंकुर