के कह पाऊ सब उस से मैं.
आँखों में बसी ख़ामोशी को,
कर पाऊ बयां फिर उससे मैं.
अरसे से दिल के कोने में,
एक आरजू गुमसुम बैठी है,
ओढ़े चादर अरमानों की,
खोई खोई सी रहेती है.
बेताब बहुत वो रहेती है,
लब पे मेरे बस आने को.
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
बतलाऊ उस अफसाने को.
कुछ रंग जुदा इन आँखों के,
कुछ लुत्फ़ अलग उन बातों का.
देखा न किसी ने अब तक जो,
अंदाज़ अलग इस दिल का है.
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
मिलवाऊ इस दीवाने को.
खुद से तो अक्सर होती है,
पर बात अधूरी लगती है.
हैं गीत मेरे सूने कब से,
एक साज़ इन्हें दे गाने को,
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
गाए वो मेरे तरानों को.
-अंकुर