" इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं, जिन का किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है यदि किसी घटना से इसकी सामान्यता होती है तो इसे लेखक की दिव्य दृष्टि कहा जायेगा"
किसी ने सच ही कहा है शादी दो आत्माओ का मेल है जो सात जन्मो तक टूट नहीं सकता ( ये हर मामले में ज़रूरी नहीं है). सात जन्मो तक चलने वाले इस चक्र को शादी कहेते हैं, या यूँ कहिये की शादी एक फिक्स्ड ड़ेपोसित है जो हर जन्म में रीन्यू हो जाता है. मेरे हिसाब से शादी की परिभाषा में कुछ कसक बाकी रह गई है, हाँ तो शादी एक डील है , ना ना शादी एक बोंड है, ना ना शादी एक एक समझोता है, देश को काबिल नागरिक देने का वादा है, जनसँख्या भाड़ाने का लइएसेन्से है या की ......... सोचिये सोचिये यदि समझ ना आये तो निरिक्षण कीजिये परिक्षण कीजिये पर सत्य से वंचित ना रहिये.
हम भी कहाँ की बातें लेके बैठ गए और पप्पू का तो ज़िक्र किया ही नहीं. परन्तु पप्पू से पहले ज़रा घरवालों से तो मिलवादें आप को.
पिता जी - पप्पू के पिता
माता जी - पप्पू की माँ
पापा जी - लड़की के पिता
मम्मी जी - लड़की की माँ
सुनती हो - लड़की.
( ये नाम वैसे ही हैं जैसे लेखक को सुनाई दिए थे, यदि गौर फ़रमाया जाये तो महाराज पप्पू अपने माता पिता को हिंदी में बुलाते हैं और अपनी पतनी के घरवालों को इंग्लिश में, किसी ने सच हे कहा है "अनेकता में एकता भारत की विशेषता")
बाकी रिश्तेदारों का परिचेय उन के आगमन पर करा दिया जायेगा, आप ये सोच रहे होंगे कि हम कौन है, तो जनाब हमारी इस शादी में भूमिका बड़ी निराली है, हम यहाँ मेहेमान है, हम खाएँगे , खिलाएँगे, नाचेंगे , नचाएंगे, और साथ हे साथ आपको पूरा किस्सा सुनाएँगे. तो हम हैं आप के सूत्रधार.
भाग -१ ( लड़की देखने जाना )
तो जनाब श्याम का सुहाना मौसम था और पप्पू जी लड़की देखने जाते हैं, ज़रूरी भी है बिना देखे और जांच पड़ताल किये हाँ कैसे करदें आखिर सात जन्मों का सवाल है. लड़की के घर पहुँच कर सबका आदर से सत्कार होता है, और कुछ समय क बाद लड़की चाय ले कर आती है. और पूछती है जी चाए में चीनी कितनी.
( अक्सर ये देखा गया है कि लड़की जब आती है तो चाय ही लेकर आती है, और जब पहेली बार कुछ बोलती है तो यही पूछती है "जी चाए में चीनी कितनी". यानि कि अधिकतर चाय फीकी ही बनाई जाती है, इस राज़ का खुलासा कि चाय फीकी क्यूँ होती है अभी तक नहीं हो पाया है.
नोट:- पाठकगण ध्यान दें लेखक को ये ज्ञान हिंदी फ़िल्में देख के हुआ है, लेखिक कि शादी नहीं हुई है , फिलहाल तलाश जारी है. )
तो जनाब बात थी चीनी कितनी,
पप्पू लड़की से : जी १ चम्मच ना ना २ चम्मच.
आखिर इस चाय ने अपना काम कर ही दिया , और बात पक्की हो गई, किसी कमरे में जा के लेन- देन कि बातें भी हो गई. अरे इसमें शर्म कैसी , लड़के के पिता का कहेना था कि जो कुछ लड़की के पिता देंगे वो उनकी बेटी को ही तो देंगे , और यदि सदियों से चली आ रही इस प्रथा का वो पालन नहीं करते तो समाज को बुरा भी तो लगे गा, आखिर मनुष्य एक सामाजिक जीव है, तो समाज के नीयम कितने ही मुड़ सही उनका पालन तो करना ही पड़ेगा.
बस फिर क्या था सब रिश्तेदरों को खबर करदी गई और, मिठाइयों का आदान शुरू हो गया. (आदान प्रदान हम इसलिए नहीं कहेंगे क्यूंकि ये एक तरफ से हे तो आ रही हैं, अजी लड़की वालों के यहाँ से).
भाग-२ ( दावत और सगाई )
इस पक्की होने के उपरांत एक महाभोज का आयोजन किया गया जिस में लोगों ने लडके और लड़की के सर पर हाथ रखा और लड़की के पिता को इतना स्वादिष्ट भोजन खिलने के लिए दुआएं दी.
ये दावतें भी बड़ी दिलचस्प होती हैं, ये केवल एक महाभोज नहीं हैं , ये हमारी परंपरा हैं, ये समस्त जहाँ को हमारा संदेश देती हैं- "खाऔ और खाने दो". किसी ने सच ही कहा है " खाना और खिलाना हमारा राष्ट्रीय शौक है "
अरे ये क्या पप्पू जी के घर में ये हलचल कैसी , अरे लगता है पुप्पू के पिताजी ने उन के पडोसी कि माँ के भाई कि सास को तो इस बात कि खबर कि ही नहीं, इस पर उन के पडोसी का गुस्सा होना भी जायज़ है, वो एसा कर भी कैसे सकते हैं आखिर उन के पडोसी हर सुख में पप्पू के परिवार के साथ थे, और आज उन के साथ एसा बर्ताव, ये तो अनुचित है.
और ये हम क्या देखते हैं कि उधर पप्पू जी कि एक दूर कि बुआ को खबर नहीं कि गई तो उन्होंने तो घर ही सर पर उठा लिया. देखा गया है कि शादी जैसे मौके पैर हर शक्स अहेमियत पाने के लिए कुछ ना कुछ बवाल खड़ा कर देता है.
(लेखिक कि यह टिप्पणी स्वयं के अनुभव एवं एकता कपूर के धारावाहीक से प्राप्त ज्ञान पर आधारित है. इस शादी के माहोल में हमे एक बात का और एहसास हुआ कि हमारे टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले धारावाहीको में कुछ अंश तो सत्य का भी होता है.)
अब प्रशन था कि सगाई का कार्यक्रम आयोजित कैसे किया जाये, डेट क्या होगी मेनू क्या होगा, जगह क्या होगी समय क्या होगा. तो इसी सब तो निर्धारित करने के लिए एक सभा हुई जिस में सबही रिश्तेदरों ने अपने अपने विचार रखे और दूसरों के विचारों को सुन्ना अनुचित समझा, और परिणाम रहा शुन्य.
यह भी हिंदुस्तान के परिवारों कि एक विशेषता रही है कि अक्सर एसी सभाएं राखी जाति हैं और परिणाम कुछ नहीं निकलता, एसा इस लिए क्यूंकि हर शक्स के हिसाब से महत्वपूर्ण है वो तो साथ हे साथ महत्वपूर्ण है उनकी बात , और जब उनकी बात इतनी महत्वपूर्ण है तो किसी और कि बात सुन्ने का तो प्रशन हे नहीं उठता ना. तो बस नतीजा शुन्य.
अब तंग आकर पप्पू के पिताजी ने ही सारे इंतजाम कर दिए, इसपर फिर घर में बवाल खड़ा हो गया कि आखिर उन्होंने किसी और से सलहा ली क्यूँ नहीं?
आखिर सगाई कि मनमोहक सुबह आही गई, जब कि फिर से एक महाभोज का आयोजन हुआ कई युवा बालाओं ने नृत्य प्रस्तुत किये, नाचते वक़्त कोई भी खुद को स्वर्ग कि अप्सरा से कम नहीं समझ रही थी और उनकी तारीफ उपरांत वो कहेती थी कि "ये तो बस यूँ ही एसे ही".
उधर अँगुठियों का आदान प्रदान हुआ इधर जनता तालियाँ बजाते ही टूट पड़ी खाने पर, और यहाँ भूख से व्याकुल पप्पू और उनकी संभावित पतनी कि कोई सुध नहीं ले रहा था, फोटो-ग्रफेर तो उनके चित्र इतनी लगन से खीच रहा था मनो किसी अदभुत चीज़ देखने मिली हो.
और अंततः कुछ अर्चानों के बाद सगाई संपन्न हुई.
भाग- ३ ( शादी )
और वो मंगल घडी आ ही गई, शादी कि सुबह का वो उबासी लेता सूरज देखते ही बनता था, अजी हम हमारे धुले-रजा पप्पू कि बात कर रहे हैं, आज किसी सूरज से कम थोड़ी लग रहे थे वो. कुछ रस्मे हुई और लीजिये समय हो गया बारात का.
सभी रिश्तेदार बस तईयार होने में जुट गए मनो उन्ही कि शादी हो , एसा प्रतीत हो रहा था कि पुरानी खटारा गाड़ियों कि मरम्मत कर के उन्हें चमकाया गया हो. युवतियां जो प्रायः हाउस-फ्ल्य लगती थी अब बटर-फ्ल्य लग रही थी.
उधर पप्पू जी को भी सजा कर घोड़ी पर लाद दिया गया और बज उठा उनका बैंड हमारा मतलब है कि बारात का बैंड अर्थात संगीत बजना शुरू हो गया. और फिर शुरू हो गया भारतीय संस्कृति का एक और सुप्रसिद्ध नाच, बारात वाला डांस. इस पूरी क्रिया में सिर्फ दो जीव इसे थे तो नाच नहीं रहे थे , एक थे पप्पू और दूसरी उनकी घोड़ी, घोड़ी जिसने अब से पहेले कई बारात बिना नाचे गुज़री थी शांत थी परन्तु पप्पू जी का मन रह रह के नाचने को कर रहा था.
बारात जब विव्ह स्थल पर पहुंची तो पप्पू जी का स्वागत यूँ किया गया मनो कोई जंग जीत के आये हैं (पर हम तो ये सोच रहे थे कि ये तो जंग कि शुरुआत है). पप्पू जी अन्दर जा कर अनपे स्थान पर विराजमान हो गये
और लीजिये इधर दुल्हन भी आगई, पर यह क्या दुल्हन को 5 -6 लड़कियों ने घेर रखा था, हमे अचम्भा हुआ कि इतने लोग इन्हें पकड़ कर क्यूँ ला रहे हैं, परन्तु हम चुप रहे.
गौरतलब है कि अगर उम अपने ज़हन पर जोर डालें तो जो गीत इस वक़्त बज रहा था वो था " बहारों फूल बरसाओ " और यह गीत हम अपने चाचा कि शादी से इस वक़्त पर सुनते आ रहे हैं. शादी के बाद गीत में फूल निकल जाते हैं और आंसू जगह ले लेते हैं, यही भाग्य कि विडम्बना है और विधि का विधान भी.
और लीजिये हो गई जय-माल, इसके उपरांत एक एसी घटना घटित हुई कि हम स्तब्ध रह गए, सभी रिश्तेदार दूल्हा दुल्हन के साथ फोटू खीचने के लिए इस कद्र व्याकुल थे कि मनो कोई दुर्लभ जीव पृथ्वी पर हो और उसके साथ फोटू लेनी हो.
अब शादी में खाने कि बात तो हम क्या हे करें क्यूंकि आप तो अब तक इस बात से अवगत हो ही चुके होंगे कि खाना खिलाना हमारा राष्ट्रीय शौक है. तो आइये चलतें हैं फेरों पर, जहाँ पर पप्पू जी ने पतनी को साक्षी मन कर अग्नि के सात फेरे लिए, अरे माफ़ कीजियेगा हम थोरा गलत कह गए फिर भी आप में से जो शादी शुदा हैं वो इस स्थिथि से भली भांति परिचित होंगे और जो नहीं हैं वो ईशवर कि कृपा से शीघ्र हे हो जाएँ इसी हम कामना करते हैं. तो लीजिये पवित्र अग्नि एवं पंडित जी के मन्त्रों के साथ ये विवह संपन्न हुआ.
अब यह संपन्न विवह स्थिर कब थक रहता है यह तो स्वयं हमे भी ज्ञात नहीं और यदि आप जानना चाहें तो निरिक्षण कीजिये परिक्षण कीजिये पर सत्य से वंचित ना रहिये.
-अंकुर