यह पत्र हमने नर्क लोक से हमारे प्रिय बन्धु को भेजा था, पत्र पढने से पहेले यदि पाठकगण लेखक को जान ले तो उचित रहेगा.
पत्र
प्रिय बन्धु,
नमस्कार
खैर , वो दोनों में से कोई कार्य नहीं कर रहे थे, वो सब की सुनवाई कर रहे थे और सब को अपने कर्म अनुसार काम पर लगा रहे थे, अब सबकुछ ऑनलाइन जो हो गया था, कंप्यूटर का इस हद तक उपयोग देख कर हमे खुद पर गर्व हुआ, आखिर हम भी इसी प्रणाली का हिस्सा जो थे.
लेखक
हम एक बड़े ही सीधे-साधे, सच्चे, सुशील स्वभाव के नागरिक हैं, हम ज़यादा भेद-भाव में विश्वाश नहीं रखते. हमारा मानना है " तेरा मेरा मत करो, सब परे हटो सब कुछ मेरा करो". हम यदि खुद को सज्जन कहें तो शायद कोई विपत्ति नहीं होगी और आप को भी कोई आपत्ति नहीं होगी. हम में सच्चाई कूट कूट कर भरी हुई है, इतनी कूट कूट कर की उसका कचूमर निकल गया है. सदा ही खुश रहेने वाले और प्रभु की आस्था में लीन रहेने वाले जीव हैं हम !
पत्र
प्रिय बन्धु,
नमस्कार
हम यहाँ नर्क लोक में स्वस्थ हैं और आशा करते हैं की उधर पृथ्वी पर आप भी कुशल मंगल होंगे, आप को यह जान कर विस्मय हो रहा होगा की हम नर्क लोक में विद्यमान कैसे हुए, तो हम आप को इस पत्र के माध्यम से बतलाते हैं की ये हुआ कैसे?
एक दिन ग्रीष्म काल की शीतल दोपहरी में हम प्रभु की आस्था में लीन थे, तभी अचानक एक दिव्य आवाज़ के साथ एक ३-डी फिगर हमारे सामने प्रकट हुआ. हमने कई धार्मिक फिल्में देखी थी उस से प्राप्त ज्ञान अनुसार हमे ये पूर्ण रूप से ज्ञात हो गया कि हमारे सामने प्रभु उपस्थित हो चुके हैं, कौनसे वो मालुम नहीं हमको. खैर हमने प्रभु को नमस्कार किया, प्रभु बोले वत्स वर मांगो , हमने कहा की हे प्रभु हम वर कैसे मांग सकते हैं देनी है तो वधू दीजिये. इसपर प्रभु ने क्रोधित होकर कहा अरे मुर्ख वरदान मांगो.
भगवान की दुआ से हमारे पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी, और हमारे सदगुण से परिपूर्ण जीवन से हमे ये पूर्ण रूप से ज्ञात था की हमारा स्वर्ग वास ही होगा नर्क वास नहीं. तो बस नर्क को एक मर्तबा देखने की इच्छा लिए हम ने प्रभुजी से कहा की
"हे प्रभु हमे टूरिस्ट वीसा पर नर्क की यात्रा करा दीजिये"हमारे इस वर से प्रभु अचेम्भे में रह गये, क्यूंकि उनके अबतक के कार्यकाल में एसा पहली बार हो रहा था कि किसी भक्त ने उन से इस तरह की मांग कि हो. खैर, प्रभु ने कहा एज़ यू विश और मध्य रात्रि में शमशान आने को कहा.
हम सही समय पर बताये स्थान पर पहुँच गये , हमने देखा की यमराज अपने भेंसे पर सवार आत्माओ को ले कर आ रहे थे, हमे विस्मय इस बात पर हुआ की यमराज ने अपनी सवारी अब तक अपग्रेड क्यूँ नहीं की, इस पर यमराज का कहेना था की " ओल्ड इस गोल्ड".
खैर हम आगे प्लेटफ़ॉर्म की तरफ बढ़े जहाँ पर आत्मा-परमात्मा एक्सप्रेस खड़ी थी. गाड़ी का नाम जान कर हमे अचम्भा हुआ तो हमने पड़ताल की, उस पर हमे ज्ञात हुआ कि क्यूँकि ये गाड़ी आत्मा का परमात्म से मेल कराती है इस लिए यह नाम इसे दिया गया है. गौरतलब है की हमारा ऐसा कुछ ख़याल म.प. रोडवेस की बसों के बारे में था हमारे विचार में जो सेवा आत्मा का परमात्म से मेल कराती है वो म.प. रोडवेस कहलाती है.
खैर हम और आगे बढ़े और हमने देखा कि, जिन आत्माओ को स्वर्ग का टिकेट मिला था वो ए.सी डिब्बे में सवार थे और नर्क यात्री जनरल डिब्बे में ठूसे जा रहे थे, जनरल डिब्बे की हालत देख के हमे नर्क लोक में दिए जाने वाली यातनाओ का अनुमान लगा लिया क्यूँकि हम कई बार भारतीय रेल के माध्यम से इस अत्यंत ही कठोर यात्रा का अनुभव कर चुके थे, हम इस सोच में पड़ गये की कही नर्क प्रशाशन ने भारतीय रेल की इस सेवा से यह प्रेरणा तो नहीं ली.
क्यूंकि हम टूरिस्ट वीसा पर थे तो हमे अलग से एक कोच प्रदान किया गया, कुछ समय के बाद हम नर्क जा पहुंचे.
वहां उतर कर नर कंकालों ने हमारा स्वागत किया, आगे हम एक विशाल कक्ष में गये जहाँ पर चित्रगुप्त जी अपने लैपटॉप पर किसी कार्य में लीन थे. हमने अक्सर लोगों को इस प्रकार कंप्यूटर के समक्ष दो ही कार्य करते देखा है, या तो facebook करते या chat करते.
खैर , वो दोनों में से कोई कार्य नहीं कर रहे थे, वो सब की सुनवाई कर रहे थे और सब को अपने कर्म अनुसार काम पर लगा रहे थे, अब सबकुछ ऑनलाइन जो हो गया था, कंप्यूटर का इस हद तक उपयोग देख कर हमे खुद पर गर्व हुआ, आखिर हम भी इसी प्रणाली का हिस्सा जो थे.
अचानक हमे ज्ञात हुआ की हमारा नाम भी उन कामगारों की लिस्ट में था, अर्थात सुनवाई की लिस्ट में था, सरकारी दफ्तरों की चरमरायी हुयी प्रशाशन व्यव्यस्था से हम धरती पर तो परिचित थे पर इस कारनामे से एक बात सिद्ध हो गयी की समस्त ब्रह्माण्ड में किसी भी सरकारी दफ्तर को देखलें हालत एवं हालात एक से ही मिलेंगे.
हमने चित्रगुप्त जी से निवेदन किया की हम तो बस टूरिस्ट वीसा पर नर्क यात्रा करने आयें हैं. इस पर उन्होंने हमसे पूछा की हमे ये वीसा प्रदान किसने किया, तो हमने पूरा किस्सा उन्हें बयां किया, इसपर चित्रगुप्त जी बोले की इस मामले की तो जांच पड़ताल करनी पड़ेगी. हम भारत के निवासी इस बात से पूर्ण रूप से अवगत थे की किसी राजनेतिक मामले में जांच पड़ताल का मतलब सालों का खेला.
चिंतित हो हमने अपने प्रभुजी को याद किया, और उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया, इसपर प्रभुजी बोले की वो फन्डामेंटल प्रभु नहीं थे अर्थात ब्रम्हा , विष्णु महेश नहीं थे, इसलिए वो हमारा धरती पर वापिस जाने का तुरंत प्रबंध नहीं करा सकते थे. परन्तु उन्होंने हमे नर्क कालोनी में एक बढ़िया सा फ्लैट दिला दिया है, अब जब मामले की जांच पड़ताल पूरी होगी तभी आप से भेट हो पाएगी.
पत्र उत्तर की प्रतीक्षा में
आपका अभिन्न मित्र
अंकुर
aati sundar...aapne apne kala ka sahi upyog kiya hai...
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