Friday 13 January 2012

सबब ज़िन्दगी का

एक अनकही अनसुनी दास्ताँ की तरह ,
किसी अधूरी तस्वीर का अक्स बादलों में ढूँढता हूँ.
ख्यालों के जहाँ में घूमता हुआ,
सबब ज़िन्दगी का ढूँढता हूँ . 

कई ख्वाबों  का बना के सिरहाना,
ओढ़े सेंकेड़ों अरमानो की चादर.
कुछ सितारों को दे के अपनों का नाम,
कुछ सपनो को दे के चांदनी का जाम,
खो जाता हूँ फलक की गेहेराइयों में अक्सर,
पूछता हूँ खुदी का पता खुद से अक्सर. 

होती है सूरज से गुफ्तगू  कई मर्तबा,
कई सवाल लिए देखता हूँ उसे.
पूछता हूँ दिशाओं से,
पूछता हूँ फिज़ाओं से,
फूलों की महक से,
परिन्दों की चेहेक से,
पूछता हूँ हवा के ज़ोर से,
पूछता हूँ दरक्थों के शोर से,
ज़िन्दगी का सबब बता मुझे,
उस का दर दिखा मुझे. 

समुन्दर में उठी एक मौज की तरह ,
बादलों से झाकती एक किरण कहेती है मुझ से,
सबब ज़िन्दगी का जहाँ को रोशन करने में है,
अँधेरे रास्तों को फिर जगमग करने में है.

कहेते हैं सितारे मुझे से,
के मिलजुल कर जीने का मज़ा कुछ और है.
और है मज़ा किसी का अज़ीज़ होने में,
बोली मुझ से चांदनी, चुपके से कोने में.
  
होले से एक झोका हवा का,
कहेता के  बतलाता हूँ ज़िन्दगी क्या है.
महकाना  जहाँ को, के इस के सिवा ज़िन्दगी क्या है.

सबब ज़िन्दगी का इबादत खुदा की
सबब ज़िन्दगी जा मोहोब्बत जहाँ की 
दर्दमंदों की हिमायत सबब ज़िन्दगी का
लबों की मुस्कराहट  सबब ज़िन्दगी का. 

- अंकुर 

1 comment: