Thursday, 3 May 2012

एक ख्वाब

एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
के कह पाऊ सब उस से मैं.
आँखों में बसी ख़ामोशी को,
कर पाऊ  बयां फिर उससे मैं.

अरसे से दिल के कोने में,
एक आरजू गुमसुम बैठी है,
ओढ़े चादर अरमानों की,
खोई खोई सी रहेती है.
बेताब बहुत वो रहेती है,
लब  पे मेरे बस आने को.
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
बतलाऊ उस अफसाने को.

कुछ रंग जुदा इन आँखों के,
कुछ लुत्फ़ अलग उन बातों का.
देखा न किसी ने अब तक जो,
अंदाज़ अलग इस दिल का है.  
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
मिलवाऊ इस दीवाने को.

खुद से तो अक्सर होती है,
पर बात अधूरी लगती है.
हैं गीत मेरे सूने कब से,
एक साज़ इन्हें दे गाने को,
एक ख्वाब मुझे एसा भी दे,
गाए वो मेरे तरानों को.

-अंकुर 

दिल की कलम से

फुर्सत 

चाहा तो बहुत  की मिल लें उन से,
वो एक लम्हा-ऐ-फुर्सत तलाश न कर सके.
हमे तो फुर्सत ही नहीं उन के ख्यालों से,
वो फुर्सत में भी हमारा ख्याल न कर सके.

हयात   

वो आए हमारे दोस्त खाने  में, रोशन हुई हयात  
रहे खामोश कहा कुछ ना , भला ये भी हुई कुछ बात.

मुद्दतों से तलाशा वो एक लम्हा, की हो मुलाकात,
मयससर हुआ मुद्दतों के बाद.
फनाह हो गया वो भी यूँ ही, ये भी हुई कोई बात.   
वो आए हमारे दोस्त खाने  में, रोशन हुई हयात.

इंतज़ार


खिला हुआ थ़ा दिल का गुलिस्तां  कभी,
उजड़ गया खिज़ा ए जुदाई में.

गुलों का खिलना मुश्किल है अब.
किसी बहार का अब हमे इंतज़ार कहाँ !

राह अब देखते नहीं हम उनकी,
मिलना लिखा होगा तो रास्ते मिल ही जाएँगे.

-अंकुर

Sunday, 15 April 2012

देश मेरा सो रहा है

पीर हो गई पर्वत सी कब से,
आहवान वो करता है कब से.

व्याकुल पड़ी है देव भूमि,
शिव-धनुष टूटे हैं कितने,
मौन परशुराम हैं अब,
गांडीव अर्जुन मांगता है.
खीचने  को फिर से रेखा,
देश लक्ष्मण मांगता है.

चक्रव्हीयु हैं अनेकों,
गुम अभिमन्यु हो गया है.
मिल गया गोवर्धन परन्तु,
मेरा कान्हा खो गया है.

अग्निपथ की जो डगर थी,
कोई उस पर कब चला है.
सरफरोशी की तमन्ना,
घोटती खुद का गला है.

चाहिए एक और शेखर,
एक बिस्मिल, एक वल्लभ.
हुनकर एक चाहिए भगत की ,
आँखें खोले जो जगत की.

चाहिए एक और गीता,
भ्रमित अर्जुन हो रहा है.
हो गई है भोर किन्तु,
देश मेरा सो रहा है.    

-अंकुर 

Friday, 30 March 2012

पप्पू की शादी

" इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं, जिन का किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है  यदि किसी घटना से इसकी सामान्यता होती है तो इसे लेखक की दिव्य दृष्टि कहा जायेगा"

किसी ने सच ही कहा है शादी दो आत्माओ का मेल है जो सात जन्मो तक टूट नहीं सकता ( ये हर मामले में ज़रूरी नहीं है). सात जन्मो तक चलने वाले इस चक्र को शादी कहेते हैं, या यूँ कहिये की शादी एक फिक्स्ड ड़ेपोसित है जो हर जन्म में रीन्यू हो जाता है. मेरे हिसाब से शादी की परिभाषा में कुछ कसक बाकी रह गई है, हाँ तो शादी एक डील है , ना ना शादी एक बोंड है, ना ना शादी एक एक समझोता है, देश को काबिल नागरिक देने का वादा है, जनसँख्या भाड़ाने का लइएसेन्से है या की ......... सोचिये सोचिये यदि समझ ना आये तो निरिक्षण कीजिये परिक्षण कीजिये पर सत्य से वंचित ना रहिये.

हम भी कहाँ की बातें लेके बैठ गए और पप्पू का तो ज़िक्र किया ही नहीं. परन्तु पप्पू से पहले ज़रा घरवालों से तो मिलवादें आप को.

पिता जी - पप्पू के पिता
माता जी - पप्पू की माँ 
पापा जी - लड़की के पिता 
मम्मी जी - लड़की की माँ 
सुनती हो - लड़की.

( ये नाम वैसे ही हैं जैसे लेखक को सुनाई दिए थे, यदि गौर फ़रमाया जाये तो महाराज पप्पू  अपने माता पिता को हिंदी में बुलाते हैं और अपनी पतनी के घरवालों को इंग्लिश में, किसी ने सच हे कहा है "अनेकता में एकता भारत की विशेषता")  

बाकी रिश्तेदारों का परिचेय उन के आगमन पर करा दिया जायेगा, आप ये सोच रहे होंगे कि हम कौन है, तो जनाब हमारी इस शादी में भूमिका बड़ी निराली है, हम यहाँ मेहेमान है, हम खाएँगे , खिलाएँगे, नाचेंगे , नचाएंगे,  और साथ हे साथ आपको पूरा किस्सा सुनाएँगे. तो हम हैं आप के सूत्रधार.       

भाग -१ ( लड़की देखने जाना )
तो जनाब श्याम का सुहाना मौसम था  और पप्पू जी लड़की देखने जाते हैं, ज़रूरी भी है बिना देखे और जांच पड़ताल किये हाँ कैसे करदें आखिर सात जन्मों का सवाल है. लड़की के घर पहुँच कर सबका आदर से सत्कार होता है, और कुछ समय क बाद लड़की चाय ले कर आती है. और पूछती है जी चाए में चीनी कितनी.

( अक्सर ये देखा गया है कि लड़की जब आती है तो चाय ही लेकर आती है, और जब पहेली बार कुछ बोलती है तो यही पूछती है "जी चाए में चीनी कितनी". यानि कि अधिकतर चाय फीकी ही बनाई जाती है, इस राज़ का खुलासा कि चाय फीकी क्यूँ होती है अभी तक नहीं हो पाया है. 
नोट:- पाठकगण ध्यान दें लेखक को ये ज्ञान हिंदी फ़िल्में देख के हुआ है, लेखिक कि शादी नहीं हुई है , फिलहाल तलाश जारी है. )

तो जनाब बात थी चीनी कितनी,
पप्पू लड़की से : जी १ चम्मच ना ना २ चम्मच.
आखिर इस चाय ने अपना काम कर ही दिया , और बात पक्की हो गई, किसी कमरे में जा के लेन- देन कि बातें भी हो गई. अरे इसमें शर्म कैसी , लड़के के पिता का कहेना था कि जो कुछ लड़की के पिता देंगे वो उनकी बेटी को ही  तो देंगे , और यदि सदियों से चली आ रही इस प्रथा का वो पालन नहीं करते तो समाज को बुरा भी तो लगे गा, आखिर मनुष्य एक सामाजिक जीव है, तो समाज के नीयम कितने ही मुड़ सही उनका पालन तो करना ही पड़ेगा.
बस फिर क्या था सब रिश्तेदरों को खबर करदी गई और, मिठाइयों  का आदान शुरू हो गया. (आदान प्रदान हम इसलिए नहीं कहेंगे क्यूंकि ये एक तरफ से हे तो आ रही हैं, अजी लड़की वालों के यहाँ से).


भाग-२ ( दावत और सगाई  )   
इस पक्की होने के उपरांत एक महाभोज का आयोजन किया गया जिस में लोगों ने लडके और लड़की के सर पर हाथ रखा और लड़की के पिता को इतना स्वादिष्ट भोजन खिलने के लिए दुआएं दी.
ये दावतें भी बड़ी दिलचस्प होती हैं, ये केवल एक महाभोज नहीं हैं , ये हमारी परंपरा हैं, ये समस्त जहाँ को हमारा संदेश देती हैं- "खाऔ और खाने दो". किसी ने सच ही कहा है " खाना और खिलाना हमारा राष्ट्रीय शौक है "

अरे ये क्या पप्पू जी के घर में ये हलचल कैसी , अरे लगता है पुप्पू के पिताजी ने उन के पडोसी कि माँ के भाई कि सास को तो इस बात कि खबर कि ही नहीं, इस पर उन के पडोसी का गुस्सा होना भी जायज़ है, वो एसा कर भी कैसे सकते हैं आखिर उन के पडोसी हर सुख में पप्पू के परिवार के साथ थे, और आज उन के साथ एसा बर्ताव, ये तो अनुचित है. 
और ये हम क्या देखते हैं कि उधर पप्पू जी कि एक दूर कि बुआ को खबर नहीं कि गई तो उन्होंने तो घर ही सर पर उठा लिया. देखा गया है कि शादी जैसे मौके पैर हर शक्स अहेमियत पाने के लिए कुछ ना कुछ बवाल खड़ा कर देता है.
(लेखिक कि यह टिप्पणी स्वयं के अनुभव एवं एकता कपूर के धारावाहीक से प्राप्त ज्ञान पर आधारित है. इस शादी के माहोल में हमे एक बात का और एहसास हुआ कि हमारे टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले धारावाहीको में कुछ अंश तो सत्य का भी होता है.)

अब प्रशन था कि सगाई का कार्यक्रम आयोजित कैसे किया जाये, डेट क्या होगी मेनू क्या होगा, जगह क्या होगी समय क्या होगा. तो इसी सब तो निर्धारित करने के लिए एक सभा हुई जिस में सबही रिश्तेदरों ने अपने अपने विचार रखे और दूसरों के विचारों को सुन्ना अनुचित समझा, और परिणाम रहा शुन्य.
यह भी हिंदुस्तान के परिवारों कि एक विशेषता रही है कि अक्सर एसी सभाएं राखी जाति हैं और परिणाम कुछ नहीं निकलता, एसा इस लिए क्यूंकि हर शक्स के हिसाब से महत्वपूर्ण है वो तो साथ हे साथ  महत्वपूर्ण है उनकी बात , और जब उनकी बात इतनी महत्वपूर्ण है तो किसी और कि बात सुन्ने का तो प्रशन हे नहीं उठता ना. तो बस नतीजा शुन्य.
अब तंग आकर पप्पू के पिताजी ने ही सारे इंतजाम कर दिए, इसपर फिर घर में बवाल खड़ा हो गया कि आखिर उन्होंने किसी और से सलहा ली क्यूँ नहीं? 

आखिर सगाई कि मनमोहक सुबह आही गई, जब कि फिर से एक महाभोज का आयोजन हुआ कई युवा बालाओं ने नृत्य प्रस्तुत किये, नाचते वक़्त कोई भी खुद को स्वर्ग कि अप्सरा से कम नहीं समझ रही थी और उनकी तारीफ उपरांत वो कहेती थी कि "ये तो बस यूँ ही एसे ही". 
उधर अँगुठियों का आदान प्रदान हुआ इधर जनता तालियाँ बजाते ही टूट पड़ी खाने  पर, और यहाँ भूख से व्याकुल पप्पू और उनकी संभावित पतनी कि कोई सुध नहीं ले रहा था, फोटो-ग्रफेर तो उनके चित्र इतनी लगन से खीच रहा था मनो किसी अदभुत चीज़ देखने मिली हो.
और अंततः कुछ अर्चानों के बाद सगाई संपन्न हुई.

भाग- ३ ( शादी )
और वो मंगल घडी आ ही गई, शादी कि सुबह का वो उबासी लेता सूरज देखते ही  बनता था, अजी हम हमारे धुले-रजा पप्पू कि बात कर रहे हैं, आज किसी सूरज से कम थोड़ी लग रहे थे वो. कुछ रस्मे हुई और लीजिये समय हो गया बारात का.
सभी रिश्तेदार बस तईयार होने में जुट गए मनो उन्ही कि शादी हो , एसा प्रतीत हो रहा था कि पुरानी खटारा गाड़ियों कि मरम्मत कर के उन्हें चमकाया गया हो. युवतियां जो  प्रायः हाउस-फ्ल्य लगती थी अब बटर-फ्ल्य लग रही थी.
उधर पप्पू जी को भी सजा कर घोड़ी पर लाद दिया गया और बज उठा उनका बैंड हमारा मतलब है कि बारात का बैंड अर्थात संगीत बजना शुरू हो गया. और फिर शुरू हो गया भारतीय संस्कृति का एक और सुप्रसिद्ध नाच, बारात वाला डांस. इस पूरी क्रिया में सिर्फ दो जीव इसे थे तो नाच नहीं रहे थे , एक थे पप्पू और दूसरी उनकी घोड़ी, घोड़ी जिसने अब से पहेले कई बारात बिना नाचे गुज़री थी शांत थी परन्तु पप्पू जी का मन रह रह के नाचने को कर रहा था.
बारात जब विव्ह स्थल पर पहुंची तो पप्पू जी  का स्वागत यूँ  किया गया मनो कोई जंग जीत के आये हैं (पर हम तो ये सोच रहे थे कि ये तो जंग कि शुरुआत है). पप्पू जी अन्दर जा कर अनपे स्थान पर विराजमान हो गये 
और लीजिये इधर दुल्हन भी आगई, पर यह क्या दुल्हन को 5 -6 लड़कियों ने घेर रखा था, हमे अचम्भा हुआ कि  इतने लोग इन्हें पकड़ कर क्यूँ ला रहे हैं, परन्तु हम चुप रहे.
गौरतलब है कि अगर उम अपने ज़हन पर जोर डालें तो जो गीत इस वक़्त बज रहा था वो था " बहारों फूल बरसाओ " और यह गीत हम अपने चाचा कि शादी से इस वक़्त पर सुनते आ रहे हैं. शादी के बाद गीत में फूल निकल जाते हैं और आंसू जगह ले लेते हैं, यही भाग्य कि विडम्बना है और विधि का विधान भी.
और लीजिये हो गई जय-माल, इसके उपरांत एक एसी घटना घटित हुई कि हम स्तब्ध रह गए, सभी रिश्तेदार दूल्हा दुल्हन के साथ फोटू खीचने के लिए इस कद्र व्याकुल थे कि मनो कोई दुर्लभ जीव पृथ्वी पर हो और उसके साथ फोटू लेनी हो.
अब शादी में खाने कि बात तो हम क्या हे करें क्यूंकि आप तो अब तक इस बात से अवगत हो ही चुके होंगे कि खाना खिलाना हमारा राष्ट्रीय शौक है. तो आइये चलतें हैं फेरों पर, जहाँ पर पप्पू जी ने पतनी को साक्षी मन कर अग्नि के सात फेरे लिए, अरे माफ़ कीजियेगा हम थोरा गलत कह गए फिर भी आप में से जो शादी शुदा हैं  वो इस स्थिथि से भली भांति परिचित होंगे और जो नहीं हैं वो ईशवर कि कृपा से शीघ्र हे हो जाएँ इसी हम कामना करते हैं. तो लीजिये पवित्र अग्नि एवं पंडित जी के मन्त्रों के साथ ये विवह संपन्न हुआ.

अब यह संपन्न विवह स्थिर कब थक रहता है यह तो स्वयं हमे भी ज्ञात नहीं और यदि आप जानना चाहें तो निरिक्षण कीजिये परिक्षण कीजिये पर सत्य से वंचित ना रहिये.

-अंकुर     

  
  


 

Tuesday, 27 March 2012

नर्क यात्रा

यह पत्र हमने नर्क लोक से हमारे प्रिय बन्धु को भेजा था, पत्र पढने से पहेले यदि पाठकगण लेखक को जान ले तो उचित रहेगा.

लेखक 
हम एक बड़े ही सीधे-साधे, सच्चे, सुशील स्वभाव के नागरिक हैं, हम ज़यादा भेद-भाव में विश्वाश  नहीं रखते.  हमारा मानना है " तेरा मेरा मत करो, सब परे हटो सब कुछ मेरा करो". हम यदि खुद को सज्जन कहें तो शायद कोई विपत्ति नहीं होगी और आप को भी कोई आपत्ति नहीं होगी. हम में सच्चाई कूट कूट कर भरी हुई है, इतनी कूट कूट कर की  उसका कचूमर निकल गया है. सदा ही खुश रहेने वाले और प्रभु की आस्था में लीन रहेने वाले जीव हैं हम !   


पत्र 
प्रिय  बन्धु,
नमस्कार

हम यहाँ  नर्क लोक में स्वस्थ हैं और आशा करते हैं की उधर पृथ्वी पर आप भी कुशल मंगल होंगे, आप को यह  जान कर विस्मय हो रहा होगा की हम नर्क लोक में विद्यमान कैसे हुए, तो हम आप को इस पत्र के माध्यम से बतलाते हैं की ये हुआ कैसे?

एक दिन ग्रीष्म काल की शीतल दोपहरी में हम प्रभु की आस्था में लीन थे, तभी अचानक एक दिव्य आवाज़ के साथ एक ३-डी फिगर हमारे सामने प्रकट हुआ. हमने कई धार्मिक फिल्में देखी थी उस से प्राप्त ज्ञान अनुसार हमे ये पूर्ण रूप से ज्ञात हो गया कि हमारे सामने प्रभु उपस्थित हो चुके हैं, कौनसे वो मालुम नहीं हमको. खैर हमने प्रभु को नमस्कार किया, प्रभु बोले वत्स वर मांगो , हमने कहा की हे प्रभु हम वर कैसे मांग सकते हैं देनी है तो वधू दीजिये. इसपर प्रभु ने क्रोधित होकर कहा अरे मुर्ख वरदान मांगो.

भगवान की दुआ से हमारे पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी, और हमारे सदगुण से परिपूर्ण जीवन से हमे ये पूर्ण रूप से ज्ञात था की हमारा स्वर्ग वास ही होगा नर्क वास नहीं. तो बस नर्क को एक मर्तबा देखने की इच्छा  लिए हम ने प्रभुजी से कहा की 
                                    "हे प्रभु हमे टूरिस्ट वीसा पर नर्क की यात्रा करा दीजिये"
हमारे इस वर से प्रभु अचेम्भे में रह गये, क्यूंकि उनके अबतक के कार्यकाल में एसा पहली बार हो रहा था कि किसी भक्त ने उन से इस तरह की मांग कि हो. खैर, प्रभु ने कहा एज़ यू विश और मध्य रात्रि में शमशान आने को कहा.

हम सही समय पर बताये स्थान पर पहुँच गये , हमने देखा की यमराज अपने भेंसे पर सवार आत्माओ को ले कर आ रहे थे, हमे विस्मय इस बात पर हुआ की यमराज ने अपनी सवारी अब तक अपग्रेड क्यूँ नहीं की, इस  पर यमराज का कहेना था की " ओल्ड इस गोल्ड".

खैर हम आगे प्लेटफ़ॉर्म की तरफ बढ़े जहाँ पर आत्मा-परमात्मा एक्सप्रेस खड़ी थी. गाड़ी का नाम जान कर हमे अचम्भा हुआ तो हमने पड़ताल की, उस पर हमे ज्ञात हुआ कि क्यूँकि ये गाड़ी आत्मा का परमात्म से मेल कराती है इस लिए यह नाम इसे दिया गया है. गौरतलब है की हमारा ऐसा कुछ ख़याल म.प. रोडवेस की बसों के  बारे में था हमारे विचार में जो सेवा आत्मा का परमात्म से मेल कराती है वो म.प. रोडवेस कहलाती है. 

खैर हम और आगे बढ़े और हमने देखा कि, जिन आत्माओ को स्वर्ग का टिकेट मिला था वो ए.सी डिब्बे में सवार थे और नर्क यात्री जनरल डिब्बे में ठूसे जा रहे थे, जनरल डिब्बे की हालत देख के हमे नर्क लोक में दिए जाने वाली यातनाओ का अनुमान लगा लिया क्यूँकि हम कई बार  भारतीय रेल के माध्यम से इस अत्यंत ही कठोर यात्रा का अनुभव कर चुके थे, हम इस सोच में पड़ गये की कही नर्क प्रशाशन ने भारतीय रेल की इस सेवा से यह  प्रेरणा तो नहीं ली. 
क्यूंकि हम टूरिस्ट वीसा पर थे तो हमे अलग से एक कोच प्रदान किया गया, कुछ समय के बाद हम नर्क जा पहुंचे.

वहां उतर कर नर कंकालों ने हमारा स्वागत किया, आगे हम एक विशाल कक्ष में गये जहाँ पर चित्रगुप्त जी अपने लैपटॉप पर किसी कार्य में लीन थे. हमने अक्सर लोगों को इस प्रकार कंप्यूटर के समक्ष दो ही कार्य करते देखा है, या तो facebook करते या chat करते.


खैर , वो दोनों में से कोई कार्य नहीं कर रहे थे, वो सब की सुनवाई कर रहे थे और सब को अपने कर्म अनुसार काम पर लगा रहे थे, अब सबकुछ ऑनलाइन जो हो गया था, कंप्यूटर का इस हद तक उपयोग देख कर हमे खुद पर गर्व हुआ, आखिर हम भी इसी प्रणाली का हिस्सा जो थे.

अचानक हमे ज्ञात हुआ की हमारा नाम भी उन कामगारों की लिस्ट में था, अर्थात सुनवाई की लिस्ट में था, सरकारी दफ्तरों की चरमरायी हुयी प्रशाशन व्यव्यस्था से हम धरती पर तो परिचित थे पर इस कारनामे से एक बात सिद्ध हो गयी की समस्त ब्रह्माण्ड में किसी भी सरकारी दफ्तर को देखलें हालत एवं हालात  एक से ही मिलेंगे.

हमने चित्रगुप्त जी से निवेदन किया की हम तो बस टूरिस्ट वीसा पर नर्क यात्रा करने आयें हैं. इस पर उन्होंने हमसे पूछा की हमे ये वीसा प्रदान किसने किया, तो हमने पूरा किस्सा उन्हें बयां किया, इसपर चित्रगुप्त जी बोले की इस मामले की तो जांच पड़ताल करनी पड़ेगी. हम भारत के निवासी इस बात से पूर्ण रूप से अवगत थे की किसी राजनेतिक मामले में जांच पड़ताल का मतलब सालों का खेला.

चिंतित हो हमने अपने प्रभुजी को याद किया, और उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया, इसपर प्रभुजी बोले की वो फन्डामेंटल प्रभु नहीं थे अर्थात ब्रम्हा , विष्णु महेश नहीं थे, इसलिए वो हमारा धरती पर वापिस जाने का तुरंत प्रबंध नहीं करा सकते थे. परन्तु उन्होंने हमे नर्क कालोनी में एक बढ़िया सा फ्लैट दिला दिया है, अब जब मामले की जांच पड़ताल पूरी होगी तभी आप से भेट हो पाएगी.

पत्र उत्तर की प्रतीक्षा में
आपका अभिन्न मित्र
अंकुर 

  





Friday, 24 February 2012

यादें

"Dedicated to my best buddies"

"ख्वाहिश तो  थी  की  थामलूं  वक़्त  को,
ये  लम्हे  मुझे  इस  कद्र  अज़ीज़  हैं .
यूँ  ठहर  जाना  फितरत  में  नहीं  वक़्त की ,
गुज़रे  कल  की  यादों  का  लुत्फ़  कुछ  और  है .

देखूँगा जो  मुड  कर अपने  कल  में  कभी,
देखूँगा  तुम्हे  मुस्कुराते  हुए , बेवजह  रूठते  झगरते  मुझसे ,
और  फिर  यूँही  , मनाते हुए .

फिर  मुस्कुरा  उठेंगे लब तुम  को  यादों  में  पाके  ,
शायद  नम  हो  पलकें  तुम  से  दूर  जाके

सुनुगा  तुम्हारी  हँसी  को  गुनगुनाते  हुए,
मुस्कुराउगा  संग  तुम्हारे किसी  अफसाने  में.
फिर मिलूँगा तुम से यादों  के आशेयाने  में.

कई  किस्से  कई  फ़साने  होंगे  फिर  से  जवां,
तुमसे  झिलमिल  हो  उठेगा  यादों  का  समा.

जो  रोक  लूँगा वक़्त  को, ये  यादों  का  जहाँ   बसाउगा कैसे,
कैसे  करूंगा याद  तुम्हे , और याद तुम को आऊंगा कैसे ."

-अंकुर

I love you All 

Monday, 16 January 2012

ख्वाहिश

ऐ  ज़िन्दगी  मुझे  उनसे  यूँ  जुदा  न  कर,
है इशक इस कद्र साए से भी उन के ,
सूरज तू बादलों में यूँ छुपा न कर .

चूम  लूगा ऐ  हवा  तुझे,
छु  के  गर  गुज़रे  गी   उनको.
बदल रुख अपना झोका एक मेरी तरफ तो कर

हल  ए  दिल  से  बेखबर,
अपनी  ही दुनिया  में  मसरूफ  वो ,
कम्बक्थ  कोई  एक  दस्तक  उन  के   दिल  पे  भी  तो  कर ,

ऐ   ज़िन्दगी  मुझे  उन  से  यूँ  जुदा  न  कर .

आलम  भी  है  ये  क्या ,क्या  बेबसी  जनाब .
खामोश  से  हैं  लब ,ढल  रहा  आफ़ताब .
कोई  एक  करिश्मा  तू , मेरी  डगर  तो  कर .

ऐ  ज़िन्दगी  मुझे  उन  से , यूँ  जुदा न  कर .

-अंकुर 



  

Friday, 13 January 2012

प्लेसमेंट वंदना


हाथ  जोड़  कर  स्तुती  करता  मै बालक  नादाँ  प्रभु ,
एक  संस्था  ऐसी  भेझो  जिस  में  मै  कुछ  काम  करू.

साथ  पुस्तकों  के   तो  मैंने  वर्ष  कई  गुज़र  दिए ,
खोज  ज्ञान  की  करने  में  रात  और  दिन  निकाल  दिए .

इतिहास   के  पन्नो   को , और   भूगोल  को  भी  माप  लिया ,
विज्ञान  का  लेके  सहारा  आणु  को  भी  नाप  लिया .

भिन्न  भिन्न  संस्कृतियों  की  परम्पराएँ  देख  ली,
हेरा  फेरी  की  परिभाषा , समेत  उदाहरण  सीख  ली .

परीक्षा  में  नय्य  मेरी  किसी  जतन  से  पार  लगी ,
याद  तुम्ही   को  कर  कर  के  प्रभु  इम्तहान  की  हर  रात  कटी .

एक  कृपा  प्रभु  और  कर  के, हमारा  कुछ  कल्याण  करें,
एक  संस्था  इसे  भेजें  जिस  में  हम  कुछ  काम  करें .

-अंकुर 

नया दौर

चहकते  थे दराक्थों पर परिंदे कभी,
मर-मर के जंगलों में गुम है कही इंसान.
इस कद्र तेज़ रफ़्तार से चलती है ज़िन्दगी,
उंगली पकड़ कर चलना, वो ज़माना कुछ और था.

शोर है क्यूँ हर तरफ हर दिशा
मद्धम आवाज़ में मीठी सी वो लोरी
वो नज़ारा , नज़ारा कुछ और था.

लम्हे भी थे वो क्या,
एक पल में रूठते, पल भर में हंस दिए
पलों के वो आशियाने, पल वो कुछ और था

मचल उठाना वो तितली को देख कर,
आँखों में थे शरारत, वो क्या दौर था
हसरतें भढ  गई किस कद्र बेपन्हा,
नन्ही हतेलियाँ, मासूम सी ख्वाइश,
ज़माना, वो ज़माना कुछ और था.

भागने लगे है क्यूँ , आप से हे अब
कशमकश में है ज़हन , माथे पे क्यूँ शिकन
आँचल तले सुकून, सुकून कुछ और था.

ये क्या दौर है ,क्या वो दौर था.
बचपन का वो ज़माना,  ज़माना कुछ और था.

- अंकुर

सबब ज़िन्दगी का

एक अनकही अनसुनी दास्ताँ की तरह ,
किसी अधूरी तस्वीर का अक्स बादलों में ढूँढता हूँ.
ख्यालों के जहाँ में घूमता हुआ,
सबब ज़िन्दगी का ढूँढता हूँ . 

कई ख्वाबों  का बना के सिरहाना,
ओढ़े सेंकेड़ों अरमानो की चादर.
कुछ सितारों को दे के अपनों का नाम,
कुछ सपनो को दे के चांदनी का जाम,
खो जाता हूँ फलक की गेहेराइयों में अक्सर,
पूछता हूँ खुदी का पता खुद से अक्सर. 

होती है सूरज से गुफ्तगू  कई मर्तबा,
कई सवाल लिए देखता हूँ उसे.
पूछता हूँ दिशाओं से,
पूछता हूँ फिज़ाओं से,
फूलों की महक से,
परिन्दों की चेहेक से,
पूछता हूँ हवा के ज़ोर से,
पूछता हूँ दरक्थों के शोर से,
ज़िन्दगी का सबब बता मुझे,
उस का दर दिखा मुझे. 

समुन्दर में उठी एक मौज की तरह ,
बादलों से झाकती एक किरण कहेती है मुझ से,
सबब ज़िन्दगी का जहाँ को रोशन करने में है,
अँधेरे रास्तों को फिर जगमग करने में है.

कहेते हैं सितारे मुझे से,
के मिलजुल कर जीने का मज़ा कुछ और है.
और है मज़ा किसी का अज़ीज़ होने में,
बोली मुझ से चांदनी, चुपके से कोने में.
  
होले से एक झोका हवा का,
कहेता के  बतलाता हूँ ज़िन्दगी क्या है.
महकाना  जहाँ को, के इस के सिवा ज़िन्दगी क्या है.

सबब ज़िन्दगी का इबादत खुदा की
सबब ज़िन्दगी जा मोहोब्बत जहाँ की 
दर्दमंदों की हिमायत सबब ज़िन्दगी का
लबों की मुस्कराहट  सबब ज़िन्दगी का. 

- अंकुर